Monday 7 May 2012

बथानी में अट्टाहस अब भी जारी है...


 तुम आए
हमें रेत दिया
हमारी औरतों के फूले गर्भ में
भोंक दिया छूरा,
ऐसा नहीं तुम नहीं चाहते हमारा जन्मना
चाहते हो लेकिन
तुम्हारी चाकरी करते हुए.

तुम आए
घड़ियाली आंसू बहा दिया
तुम्हें चाहिए था वोट
लोकतंत्र का सबसे बड़ा झूठ.

सत्ता तुम्हारी
पुलिस तुम्हारी
इंसाफ का ढोंग भी तुम्हारा.

बथानी के हरेक चूल्हे में
तुम्हारे लगाए आग की धमक
अब भी बाकी है.

कहां नहीं है बथानी
कहीं तुम गुप्तांग में भर देते हो पत्थर
कहीं नोंच डालते हो सीना
और लोकतंत्र को लाज भी नहीं आती.

तुम्हारी तलवार अब भी
लटकी है हमारे गर्दन पर,
बथानी में
तुम्हारा अट्टाहस अब भी जारी है... 

-सरोज